Tuesday, April 9, 2019

इस्लाम के हदों में

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जब क़ैद हो जाओ तुम, अपनी आज़ादियों में,
तो लौट आना फिर इस्लाम की हदों में।
इन हदों में हर वक़्त,
रहेगा दिल तेरा मुन्नवर।
यहाँ वो सुकूँ मिलेगा,
जिसे तुमने किया हो न तसव्वुर।
जब हार जाओ तुम, सारी मुहब्बतों में।
तो लौट आना फिर ईमान की हदों में।
कामयाबियों के धुन में,
जब बहुत दूर निकल जाओ।
आवाज़ आपने दिल की,
तुम ख़ुद ही न सुन पाओ।
बेज़ार हो जाओ जब, दुनिया की लज़्ज़तो से।
तो लौट आना फिर क़ुरआन की हदों में।
तलब है तुम्हें सुकून की,
हर वक़्त ही,हर हाल में।
तो दिल के हर कोने से,
शैतान को निकाल दे।
जब ख़ौफ़ आने लगे, जहन्नम की अज़ीयतों से,
तो लौट आना फिर तुम रहमान की हदों में।
मरने के बाद भी अगर,
हो जीने की तमन्ना।
तो हुक़्म-ए-ईलाही के ख़िलाफ़,
करना काम तुम कभी ना।
लुत्फ़ लेना चाहते हो ,जन्नत की नेयमतों से,
तो लौट आना तुम इस्लाम की हदों में।

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