Wednesday, January 30, 2019

उम्मीदों का टूटना

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चाहे जितने अज़ीम होंगे तुम,
मेरे सामने तो बस एक झूठे हो।
मुझे था तोड़ना और तोड़ दिया,
तोड़कर ख़ुद भी तो तुम टूटे हो।
                टूकड़े तुम चुनकर लाओ तेरी,
                हम हमारी बिसात समेटेंगे।
                आज़ मुहब्बत की तराज़ू में,
                दर्द की औक़ात तोलेंगें।
तुम मेरी फ़िक़र न करना,
तेरे बाद हम भी बदले हैं।
हम भी फिसले थे तेरे आने से,
तेरे जाने के बाद संभले हैं।
                  अब एक नई सी दुनिया में हम,
                   बड़े सुकून से जीते हैं।
                   न यहाँ ग़ैर है कोई अपना,
                   न बेवफ़ाई किसी ने सीखे हैं।
तुम्हें माफ़ करना बड़ा आसान होता,
तुमने वादें जो न किये होते।
हम भी ख़ुश होते अपनी दुनिया में,
तुमसे उम्मीदें न रखे होते।
                     ये उम्मीदों का टूटना ज़ालिम,
                     दिल को तक़लीफ़ बहुत देता है।
                     और मुस्कुराहटें दिल की,
                     दिल ख़ुद ही छीन लेता है।
मेरी दुनिया से दूर जाकर तुमको,
मिला बेहतरीन क्या तुम ही सोचो।
अब न बढ़ो तुम मेरे घर के तरफ,
अपने क़दमों को तुम वहीं रोको।

Friday, January 25, 2019

ख़्वाहिशों का ख़ात्मा

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मुझे रंज है ना मलाल है।
मेरे वजूद का ये ज़वाल है।
मेरी ख़्वाहिशों का है ख़ात्मा,
मेरी ज़िंदगी का सवाल है।
                 तू लौट आए अगर अभी से भी,
                 मैं नाराज़गी में भी हँस पडूँ।
                 मेरे सर पर हाथ जो रख दे तू,
                 मैं दुबारा से जीने लगूँ।
मुझे उम्मीद है तेरे आने की,
उम्मीदों पर साँसें बाक़ी है।
इस फ़लक़ से अज़ीम ईश्क़ की,
हर एक मुलाक़ात आधी है।
                    तू जो आये तो मुझे सुकूँ मिले,
                     तेरे बग़ैर हर शय उदास है।
                     मुझे क्या गरज़ इस जहान से,
                     मेरे दोनों जहाँ तेरे पास है।
यूँ बेख़बर ना रहा करो,
मेरे ईश्क़ से मेरे हाल से।
मुझे माफ़ कर अगर ख़ता किया,
सारे रंज दिल से निकाल दे।
                       तेरे दीद का हूँ मैं मुन्तज़िर,
                       दीदार दे, मुझे प्यार दे।
                       हर हाल में मुझे आ मिलो,
                       साँसों को तेरा इन्तज़ार है।
मुझे रंज है ना मलाल है,
मेरे वजूद का ये ज़वाल है।
मेरी ख़्वाहिशों का है ख़ात्मा,
मेरी ज़िंदगी का सवाल है।

Thursday, January 24, 2019

रिश्तों का तमाशा

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ऐसे तमाशा बना कर रिश्तों का,
तुमको हासिल भी और क्या होगा।
इब्तेदा ही किया बुरे से तो ,
बेशक़ अंज़ाम भी बुरा होगा।
       चलो तुम अपने हक़ की बात करो,
       हम सर झुका कर सुनते हैं।
       तुम अपने नाम कर लो सारी जमीन,
       हम उस आसमाँ को चुनते हैं।
हमें सुकून की जरूरत है,
शोर आ रही है यहाँ हर ज़ानिब से।
वो गवाह जितने लाये थे,
सब के सब मुजरिमों के आशिक़ थे।
         यक़ीन इंसाफ से न उठ जाए,
         इससे पहले ज़मीर जगा लो अपनी।
         तुम्हें अदालतों की ज़रूरत न हो,
         अपनी जुर्मों को सज़ा दो ख़ुद ही।
साफ रखो इस शहर की हवा,
ये हवा दिलों तक जाती है।
नफ़्स की ग़ुलामी अब न झेलेंगे,
मेरी ख़ुदी मुझे बुलाती है।

Tuesday, January 22, 2019

लहरों से गुफ़्तगू

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मैं किनारे खड़ी थी समुन्दर के,
लहरों से करने गुफ़्तगू।
कुछ उनकी बातें मैं सुनूँ,
कुछ अपनी बातें उनसे कहूँ।
          मैंने बातों की यूँ  इब्तेदा किया,
          कि ज़िन्दगी से गीला किया।
          कहा "बद-नसीबी में हूँ मैं जी रही,
            सुकून क़ल्ब को हासिल नहीं।
                       कभी मंजिलों ने ठुकरा दिया।
                       कभी अपनों ने मुझको तबाह किया।
                       कभी ख़्वाबों ने की बगावतें ,
                       कभी जख़्मों की झेली अदावतें
                                 अब इस क़दर मैं निरास हूँ।
                                  कि ज़िन्दगी से बे-आस हूँ।
                                  बस यहीं मेरे ख़्याल हैं।
                                  तू बता की तेरा क्या हाल है।
मेरी बात सुनकर समुन्दर ने,
अफ़सोस की बे-इन्तेहाँ।
फिर लहरों ने आकर क़रीब,
हाल अपना बयाँ किया।
        कहा-"सुन ज़रा तुम ध्यान से।
        इस बेगरज से जहान से।
        कुछ माँगने की उम्मीद छोड़ दे।
         दे हर एक को जितना तू दे सके।
                  ना मलाल कर तक़दीर का।
                  तेरे साथ है तेरा ख़ुदा।
                  वो तेरा साथ देगा तूफान में।
                  तेरा पास अगर तेरा ईमान है।
                            तू मंजिलों का ग़म न कर।
                            राहों पर चलना कम न कर।
                            तेरे ख़्वाब ख़ुद तेरे पास आएंगे।
                             तेरे अपने भी तुम्हें अपनायेनंगे।
मुझे देख मैं किनारों से,
खाता हूँ कितनी ठोकरें।
फिर भी कभी मैं थका नहीं।
एक पल के लिये भी डरा नहीं।
          मैंने हार भी नहीं मानी है।
          और दिल में मैंने ये ठानी है।
          ताउम्र यूँ ही लड़ूंगा मैं।
          जख़्मों से कभी न डरूंगा मैं।
                    अगर जोर तुम भी लगाओगे।
                    तो किनारें भी तोड़ जाओगे।
                    ख़ुद पर भरोशा होगा तुम्हें।
                    टूटेंगी ना फिर उम्मीदें।
                             फिर जीत तेरी किस्मत होगी।
                             हर दिल में तेरी अज़मत होगी।
                            अपने दिल को ज़रा समझाओ तुम।
                            हद है! अब तो ज़रा मुस्कुराओ तुम।

मेरा सुकून

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मेरा ख़्याल हो,मेरा सुकून हो।
तुम जो भी हो,बड़े हसीन हो।
मेरी ज़िद्द हो तुम,मेरा जुनून हो।
तुम जो भी हो, बड़े हसीन हो।
                     तुम्हें सोच लूँ तो मैं हँस पडूँ।
                     जो चाहो तुम वो सब करूँ।
                     तुम उदास हो ये ना होने दूँ।
                      तू ख़ुश रहे तो मैं ख़ुश रहूँ।
मेरा ख़्याल हो,मेरा सुकून हो।
मेरी ज़िद्द हो तुम,मेरा जुनून हो।
                      तेरे नाम की मेरी महफ़िलें।
                      तन्हाइयों में,तुम्हें सोचा करें।
                      तेरा साथ दूँ , हर हाल में।
                      मेरा जवाब हो,तेरे सवाल में।
मेरा ख़्याल हो,मेरा सुकून हो।
तुम जो भी हो,बड़े हसीन हो।

ज़रा वक़्त दो...!!!

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ज़रा वक़्त दो, मैं समेट लूँ
जो टुकड़े गिरे हैं वजूद के।
यहाँ हर क़दम पर हैं हादसे,
यहाँ हर क़दम पर रक़ीब हैं।
मुझे रोकना है तूफान को,
मुझे हौसलों का जहान दो।
मुझे जीतना है ज़ुर्म से,
मुझे बेतहाशा ईमान दो।
मैं ना ग़म करूँ कि अब वो ग़ैर है,
जो कल तलक़ मेरी जान था।
मैं बस चल पडूँ मेरी राह पर,
ये मान कर वो एक इम्तेहान था।
मुझे हारने का ग़म न हो,
मुझे जीतने का शौक़ दे।
मुझे ग़ुरूर आकर न घेर ले,
मुझे सीखने का शौक़ दे।
मैं उलझ न जाऊँ फ़रेब में,
मुझे हक़ीक़तों का इल्म दे।
मैं सहूँ न कोई ज़ुल्म और,
रखूँ पाक़ ख़ुद को ज़ुल्म से।
मेरी आवाज़ सुन,मेरी मुराद सुन,
ऐ मेरे परवर-दिगार........!!!
मुझे तराश दे, मुझे सँवार दे,
और सुन मेरी हर एक पुकार!

Monday, January 21, 2019

कभी जब थकना चाहती हूँ

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कभी जब थकना चाहती हूँ।
कभी जब रुकना चाहती हूँ।
मैं ज़िन्दगी की धूप से,
कभी जब बचना चाहती हूँ।
                    तो कोई थाम लेता है,
                     मेरी ढहती हुई हिम्मत।
                      और समेट लाता है,
                      मेरी बिखरी हुई किस्मत।
वो मुझे डूबने से पहले तैरना सिखाता है।
इतना हसीन रिश्ता,मुझसे मेरे अल्लाह का है।
एक के बाद एक जब,
हमसे तूफ़ां टकराते हैं।
सब हमें छोड़ जाते हैं,
हम तन्हा रह जाते हैं।
                             साया कर के बचता है कोई,
                             हमें बारिश से,धूप से।
                             हर ग़म में लगाता है गले,
                             ख़ुशी के रूप में...।
वो मेरी मरती हुई उम्मीद को जीना सिखाता है।
इतना हसीन रिश्ता, मुझसे मेरे अल्लाह का है।
जब अँधेरों के डर से,
मैं आँखें बंद करती हूँ।
राहों में खोने के ख़ौफ़ से,
ख़्वाब अपने तंग करती हूँ।
                                   तो एक नूर का दिया,
                                   कर जाता है कोई रौशन।
                                   मेरे ख्वाबों में जान डालता है,
                                   देता है उन्हें धड़कन।
वो मुझे ग़लतफ़हमियों के दौर से बाहर ले आता है।
इतना हसीन रिश्ता.........मुझसे मेरे अल्लाह का है