Thursday, January 24, 2019

रिश्तों का तमाशा

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ऐसे तमाशा बना कर रिश्तों का,
तुमको हासिल भी और क्या होगा।
इब्तेदा ही किया बुरे से तो ,
बेशक़ अंज़ाम भी बुरा होगा।
       चलो तुम अपने हक़ की बात करो,
       हम सर झुका कर सुनते हैं।
       तुम अपने नाम कर लो सारी जमीन,
       हम उस आसमाँ को चुनते हैं।
हमें सुकून की जरूरत है,
शोर आ रही है यहाँ हर ज़ानिब से।
वो गवाह जितने लाये थे,
सब के सब मुजरिमों के आशिक़ थे।
         यक़ीन इंसाफ से न उठ जाए,
         इससे पहले ज़मीर जगा लो अपनी।
         तुम्हें अदालतों की ज़रूरत न हो,
         अपनी जुर्मों को सज़ा दो ख़ुद ही।
साफ रखो इस शहर की हवा,
ये हवा दिलों तक जाती है।
नफ़्स की ग़ुलामी अब न झेलेंगे,
मेरी ख़ुदी मुझे बुलाती है।

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